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12:01 PM
सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के प्रवचन (08-अगस्त-2018, दिल्ली, भारत 🇮🇳)
सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के प्रवचन (08-अगस्त-2018, दिल्ली, भारत )
प्रेरणा दिवस
सद्गुरु माता सविंदर हरदेव जी महाराज
प्यारी साध संगत जी, प्यार से कहना, धन निरंकार जी !
1) साध संगत जी, आज प्रेरणा दिवस पे एक ऐसी माँ कि प्रेरणा अपने जीवन मे उतरे,
जो सिर्फ ना कि कुछ 3 बच्चों की माँ थी,
पूरी संगत की माँ थी,
वो एक पुराण गुरसिख थे,
वो सद्गुरु स्वयं रूप थे,
उन्होंने हमेशा बचपन से ही एक ही चीज़ से जोड़ा है कि निरंकार पे सब छोड़ो,
चाहे कोई भी स्थिति हो वो निरंकार ही संभालेगा,
जो सिर्फ ना कि कुछ 3 बच्चों की माँ थी,
पूरी संगत की माँ थी,
वो एक पुराण गुरसिख थे,
वो सद्गुरु स्वयं रूप थे,
उन्होंने हमेशा बचपन से ही एक ही चीज़ से जोड़ा है कि निरंकार पे सब छोड़ो,
चाहे कोई भी स्थिति हो वो निरंकार ही संभालेगा,
2) साध संगत जी,
भावुक होना तो हम सब होंगें,
क्योंकि उससे माँ ने हमारे को सबको इतना कुछ दिया है पर साथ मे जो सबसे बड़ी सीख दी है, वो भाणे में रहने की सीख दी है ।
भावुक होना तो हम सब होंगें,
क्योंकि उससे माँ ने हमारे को सबको इतना कुछ दिया है पर साथ मे जो सबसे बड़ी सीख दी है, वो भाणे में रहने की सीख दी है ।
दासी के अंदर भी बहुत ही एक emotional outburst हो रहा है पर आप संगत को देख कर तो एक जो मन मे ठहराव जो आ रहा है,
वो सिर्फ सद्गुरु की कृपा और निरंकार के एहसास और आपके साहारे से हो रहा है,
दासी अरदास करना चाह रही है, कि पिछले कुछ दिनों में जब-जब भी लाईनो में आप सबके चेहरे देखे, कोई आँखे नम भी दिखी, सब निरंकार को याद करते हुए नामी देखी,
और कोई-कोई ऐसे भी चेहरे दिखे कि जो आँखे तो भारी हुई थी,
पर चेहरे पे मुस्कराहट की तरफ से दासी को आशीर्वाद दे रहे थे ,
और कोई-कोई ऐसे भी चेहरे दिखे कि जो आँखे तो भारी हुई थी,
पर चेहरे पे मुस्कराहट की तरफ से दासी को आशीर्वाद दे रहे थे ,
इससे बिल्कुल वही बात ज़हन में आ रही थी कि जब जब ऐसा चेहरा दिखता कि निरंकार के ऊपर जो पुराण विश्वास करते है, बिल्कुल भाणे में रह के
जैसे,
*' संत जणां दा वड्डा जेवर भाणे अंदर रहना है '*
जैसे,
*' संत जणां दा वड्डा जेवर भाणे अंदर रहना है '*
वही बात वो सिद्ध की आप सबने और दासी को वही दृश्य देख के अंदर से इतनी मजबूती भी मिली ।
3) सांसारिक रूप में तो जिसके माँ-बाप नही होते वो अनाथ होते है,
पर सद्गुरु ने स्वयं _संगत रूप 'माँ '_ और _निरंकार रूप 'पिता '_, जो जिंदगी में दिया है अब कोई भी ये कभी नही कह सकते कि हम अनाथ है,
पर सद्गुरु ने स्वयं _संगत रूप 'माँ '_ और _निरंकार रूप 'पिता '_, जो जिंदगी में दिया है अब कोई भी ये कभी नही कह सकते कि हम अनाथ है,
4) साध संगत जी, पल-पल हम बस इस निरंकार को याद रखे कभी भी हमेशा एक ऐसी चीज़ याद रखे की निरंकार हमे हर पल देख रहा है,
क्या हम वो जिंदगी सच मुच जी पा रहे है जो सद्गुरु माता जी ने चाही,
जो उन्होंने message दिये,
और या जो बाबाजी ने चाही थी, हम सबका एक बहुत बड़ा फर्ज बनता है,
कि जो भी अब सपने _बाबा जी-माता जी_ के हम सबको लेकर थे,
हमने अपनी जिंदगी में वो खुद भी पूरा उतारना है,
हम सबको हर एक-एक महापुरष को, एक-एक निरंकारी को अब एक चलता-फिरता प्रचार करना है ।
जो उन्होंने message दिये,
और या जो बाबाजी ने चाही थी, हम सबका एक बहुत बड़ा फर्ज बनता है,
कि जो भी अब सपने _बाबा जी-माता जी_ के हम सबको लेकर थे,
हमने अपनी जिंदगी में वो खुद भी पूरा उतारना है,
हम सबको हर एक-एक महापुरष को, एक-एक निरंकारी को अब एक चलता-फिरता प्रचार करना है ।
5) साध संगत जी, आज शब्द ज्यादा साथ नही दे रहे दासी अरदास कर रही है कि आप सारी संगत दासी के साथ सिमरन करे,
_तू ही निरंकार_
_मैं तेरी शरण हां_
_मैंनू बक्श लो_
_मैं तेरी शरण हां_
_मैंनू बक्श लो_
_तू ही निरंकार_
_मैंतेरी शरण हां_
_मैंनू बक्श लो_
_मैंतेरी शरण हां_
_मैंनू बक्श लो_
_तू ही निरंकार_
_मैं तेरी शरण हां_
_मैंनू बक्श लो_
_मैं तेरी शरण हां_
_मैंनू बक्श लो_
6) साध संगत जी, जैसे बचपन से ही संगत माँ ने बड़ा किया है आगे भी आप सब अगुवाई करते रहना, जिस तरह एक दासी कि झोली में सेवा आयी हैं,
मिशन एक साफ चादर रूप में है, दासी को आशीर्वाद दीजिये कि दासी कभी कुछ ऐसा ना करे जिससे मिशन पे कोई भी दाग लगे ।
मिशन एक साफ चादर रूप में है, दासी को आशीर्वाद दीजिये कि दासी कभी कुछ ऐसा ना करे जिससे मिशन पे कोई भी दाग लगे ।
साध संगत जी, प्यार से कहना,
धन निरंकार जी।
धन निरंकार जी।