समर्पण पर अध्यात्म में बहुत कुछ कहा और सुना जाता है।कुछ आज की बाते ,कुछ पुरातन समय की बाते जो बताती है कि समर्पण के क्या फायदे है ।
दास आज सामान्य जीवन की वो बातें सांझा करेगा जो हम बचपन से देख देख कर बड़े हुए है ।
हम सबने शादी जरुर देखी होगी,एक लड़की जो बरसों बरस माता - पिता के लाड प्यार में पली बढ़ी ,वो एक दिन ऐसे घर में जाने को तैयार हो जाती है जहां वो किसी को नहीं जानती,उनका रहन - सहन,खान - पान,उनका नेचर,कुछ उसे नहीं पता होता है,फिर भी वो वहा जाने को तैयार होती है ।
शादी में लड़की बड़ी डरी सहमी सी,संशय के साथ एक नया जीवन जीने के लिए पहला कदम बढ़ाती है ।इन्हीं सब मनो भावो के साथ वो माता पिता को छोड़ कर नए घर में,नए परिवेश में प्रवेश करती है,जहा वो अभी एक दम नई है,अभी उसे अपने कल की खबर नहीं की कल का जीवन कैसा होगा,कैसा उसके साथ व्यवहार किया जायेगा ।
फिर भी वो सबसे पहले जो काम करती है वो है "समर्पण"।
वो अपने पति के प्रति पूर्ण समर्पित होती है,अपने को पति की दासी बना लेती है ।वो हर कुछ करने को राजी हो जाती है जो पति चाहता है ।धीरे धीरे सारे घर परिवार की वो लाडली बन जाती है ।वो कुछ नहीं मांगती पर वो सब कुछ उसे मिलने लगता है जो उसे चाहिए ।वो दासी बन कर रहती है लेकिन धीरे धीरे घर की मालकिन बना दिया जाता है।उसका समर्पण उसे घर परिवार का अहम सदस्य बना देता है,अब उसके चाहे बगैर घर में कुछ नहीं होता ।क्या करना है,क्या होना है अब उस से पूछा जाने लगता है ।वो ना कुछ मांगती है ना कोई अधिकार जतलाती है,फिर भी वही होता है जो वो चाह रही होती है ।
वो लड़की जो डरी सहमी सी आयी थी,आज उसके इशारे पर पूरा घर चल रहा होता है,ये सब होता है उसके "समर्पण" के कारण ।एक समर्पण ने उसे दासी से मालकिन बना दिया होता है ।
ये जीवन की सच्चाई है,जो हमेशा देखने को मिलता है,मिलता रहेगा ।
जरूरत है समर्पण की,जिसने भी समर्पण किया,चाहे वो कोई भी हो,उसका जीवन बदल गया ।
हम सब सत्गुरु के बच्चे है,सत्गुरु ने जो दात बक्सी है,जो ज्ञान बक्सा है,उससे हमारी जिन्दगी बदली है।
जीवन में अगर आनंद और खुशियों का आगमन होता है तो वो एक समर्पण के कारण ही हो पाता है ।
प्यार भरा धन निरंकार जी,
त्रुटियों को बक्स देना जी संतो..