सेवा के पुंज, वीरता के प्रतीक,
चाचा प्रताप सिंह जी ने बाबा गुरुबचन सिंह जी से ये वर मांगा था कि
"हे प्रभु, मैं जियूँ तो आपके चरणों में, और मरूँ भी तो आप ही के चरणों में"
इसी समर्पण भाव के चलते चाचा जी, अंत स्वासों तक सतगुरु के चरणों में तोड़ निभा गए।
इसी समर्पण भाव के चलते चाचा जी, अंत स्वासों तक सतगुरु के चरणों में तोड़ निभा गए।
आज 24 अप्रैल के दिन निरंकारी मिशन के इतिहास में एक खास अहमियत रखता है। जब 24 अप्रैल 1980 को मानवता के दुश्मनों ने बाबा गुरबचन सिंह जी पर गोलियां चलाई तो उनको कुछ न हो, इसलिए चाचा प्रताप सिंह जी बाबा जी के आगे आ गए, और बाबा जी की तरफ आ रही सारी गोलियां अपने ऊपर झेल ली।
ऐसी सेवा, ऐसा समर्पण, ऐसा भक्ति भाव, ऐसी शूर वीरता उन्ही में हो सकती थी, जो अपनी जान की परवाह किये बिना उस मानवता के मसीहा को बचाने उनके आगे आ गए
ऐसी सेवा, ऐसा समर्पण, ऐसा भक्ति भाव, ऐसी शूर वीरता उन्ही में हो सकती थी, जो अपनी जान की परवाह किये बिना उस मानवता के मसीहा को बचाने उनके आगे आ गए
सेवा के ऐसे पुंज और वीरता के ऐसे प्रतीक को शत शत नमन